भगवान शिव के विवाह की कथा हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण घटना है। इस विवाह की कथा में भगवान शिव की विवाहिता, देवी पार्वती, के साथ उनके विवाह के बारे में वर्णन किया गया है। इस विवाह की कथा एक प्रकार से हमें भगवान शिव के और उनकी पत्नी पार्वती के प्रेम और संयोग की अद्भुत कहानी सुनाती है। चलिए, हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करें।
कथा:
शिव विवाह की कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्रेम का आह्वान किया। पार्वती, जो पूर्व जन्म में सती नाम से प्रसिद्ध थीं, ने भगवान शिव के ध्यान और तपस्या में अपनी साधना की थी। उन्होंने व्रत रखकर और विधिवत पूजा करके भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास किया। उनके परिश्रम और आत्मसमर्पण को देखकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी बनाने का फैसला किया। यह घोषणा उनके विवाह के रूप में हुई। इस कथा के अनुसार, शिव और पार्वती के विवाह का आयोजन देवलोक में हुआ। देवताओं और ऋषियों की उपस्थिति में भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह के रस्मों का वर्णन किया गया है। वेदमंत्रों के पठन, अग्नि देवता के साक्षात्कार, फेरों की पूर्णता, शिव-शक्ति की अद्वितीय एकता के साक्षात्कार के अलावा इस विवाह के अनेक प्रमुख घटनाओं का वर्णन है।
विवाह के पश्चात शिव पार्वती के साथ हिमालय पर्वत पर विराजमान हुए और वहां अपने भक्तों और देवताओं की कृपा का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार शिव और पार्वती का विवाह धार्मिक एवं सामाजिक महत्त्व की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण घटना है।
पौराणिकता:
शिव विवाह की कथा में दिव्यता और आध्यात्मिकता के अलावा पौराणिकता भी एक महत्वपूर्ण तत्व है। इस कथा में विभिन्न पौराणिक विश्वास और मान्यताओं का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार, शिव विवाह से ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, कुबेर, यमराज, गंधर्व, नारद, अप्सराएं और अन्य देवता उनके स्वर्गीय विश्राम स्थानों में अवतार लेने का वरदान प्राप्त करते हैं। इसलिए शिव विवाह को पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
तथ्य:
शिव विवाह की कथा के अलावा, इसके पीछे कुछ ऐतिहासिक और वैज्ञानिक तथ्य भी मौजूद हैं। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में शिव विवाह के रिटुअल्स आयोजित किए जाते हैं और लोग इसे महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में मनाते हैं। शिव विवाह की महिमा के अध्ययन से भारतीय संस्कृति और विरासत में दिए गए एकांत और एकता के सिद्धांत का पता चलता है।
समय:
शिव विवाह का आयोजन विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृति के अनुसार भिन्न-भिन्न समय में होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को शिव विवाह के रूप में मनाया जाता है। यह तिथि दिसंबर और जनवरी के बीच पड़ती है।
सारांश:
हमारी संस्कृति और आध्यात्मिकता के रूप में संजोए गए हैं। यह कथा हमें भगवान शिव के और उनकी पत्नी पार्वती के प्रेम और संयोग की महत्त्वपूर्ण कहानी सुनाती है। यह एक प्रेरणादायक और आध्यात्मिक कथा है जो हमें समरसता, सामंजस्य, प्रेम और पारिवारिक संबंधों के महत्व को समझाती है। महादेव विवाह की कथा में हमें देवी पार्वती के प्रेम और त्याग की मिसाल मिलती है। उन्होंने भगवान शिव के प्रति अदम्य प्रेम और समर्पण का प्रदर्शन किया। इसके बाद उन्हें महादेवी, शैलपुत्री, पार्वती, अंबा, जगदम्बा, कालिका, गौरी और अन्नपूर्णा आदि नामों से पुकारा जाने लगा।
शिव विवाह: कथा, पौराणिकता, तथ्य और समय
शिव विवाह की कथा में विभिन्न देवताओं, ऋषियों, गंधर्वों, अप्सराओं और अन्य दिव्य प्राणियों का समावेश होता है। इसके साथ ही शिव-शक्ति के एकत्व को दर्शाने वाली विभूतियाँ भी प्रकट होती हैं। यह विवाह पूर्णता, समता और सृष्टि की सुन्दरता का प्रतीक है। शिव विवाह का आयोजन विशेष रीति-रिवाज, पूजा-अर्चना और मंत्र-तंत्र के साथ सम्पन्न होता है। इसमें विवाह के पूर्व व्रत और त्याग, पंडितों द्वारा मंत्रों का पठन और पुराणिक कथाओं का सांगोपांगित होता है।
महादेव विवाह के समय भगवान शिव और देवी पार्वती को विशेष रूप से सजाया जाता है। उन्हें श्रृंगारिक वस्त्र, मुकुट, हार, कंगन और अन्य आभूषण पहनाए जाते हैं। इसके बाद विवाह मंडप में विधिवत पूजा की जाती है और फेरों के द्वारा विवाह की संस्कारों को पूर्ण किया जाता है। विवाह के बाद देवी पार्वती और भगवान शिव हिमालय पर्वत पर विराजमान होते हैं और वहां उनकी पूजा-अर्चना और भक्तों को आशीर्वाद देने का कार्य संपन्न होता है।
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